भद्र योग
यदि बुध अपनी स्वराशि मिथुन या उच्च राशि कन्या में स्थित होकर केन्द्र में स्थित हो तो ‘भद्र’ योग बनता है। यह भी केंद्र में स्थित होकर लग्न को बलवान बनाएगा। बुध को विष्णु अर्थात् सात्विक तथा परोपकारी व यज्ञीय माना गया है। इसलिए भद्र योग वाला मनुष्य सात्विक प्रकृति और निस्वार्थ भाव से सेवा में रत होगा।
योग का फल : इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति कुशाग्र बुद्धि वाला होता है। वह श्रेष्ठ वक्ता, वैभवशाली व उच्चपदाधिकारी होता है। बुध के प्रभाव के कारण विद्वत्ता, परोपकारिता, नम्रता, आदि गुण चरित्र में उत्पन्न होते हैं। इस योग से प्रभावित जातकों के हाथ ज्यादा लम्बे होते हैं। ऐसे जातक श्रेष्ठ प्रशासक, आंकड़ों से जुड़े कार्य, बैंक, सीए, क्लर्क, अध्ययन कार्यों से संबंधित कार्य करते हैं।
हंस योग
जब गुरु अपनी स्वराशि मीन या धनु अथवा उच्च राशि कर्क में स्थित होकर केन्द्र स्थान (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव) में हो तो ‘हंस’ नामक महापुरुष योग बनता है। ऐसा गुरु बेहद उच्च फल देने वाला होता है। जो योग में पैदा होते हैं, उनके हाथ और पैरों में शंख, कमल, मत्स्य और अकुंश के चिह्न होते हैं। ऐसे लोगों पर विशेष ईश्वरीय कृपा रहती है।
योग का फल : ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान, आध्यात्मिक, ज्ञाता और सदाचारी होता है। प्रसिद्धि प्राप्त होती है। उच्च पद प्राप्त होता है। वाहन और मकान का पूर्ण सुख प्राप्त होता है। जीवनसाथी का पूर्ण सहयोग मिलता है।
ये बहुत अच्छे शिक्षक और प्रबंधक की भूमिका निभा सकते हैं।