पापमोचिनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आती है। यह अक्सर होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के बीच में होती है इसलिए इसे विशेष फलदायी माना जाता है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति अपने पापों का प्रायशचित करना चाहता है, उसको यह व्रत जरूर करना चाहिए। पापमोचनी एकादशी के व्रत में मनुष्य के सभी पापों को नष्ट करने की क्षमता होती है। इस व्रत को रखने से मुनष्य पाप मुक्त हो सकता है और उसे संसार के सभी सुख मिल सकते हैं। इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति को विपरीत से विपरीत हालात में भी भगवान विष्णु की कृपा मिलती है।
व्रत से जुड़ी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि चैत्ररथ नामक वन में वर्षों से भगवान शिव की तपस्या कर रहे थे। एक दिन मंजुघोषा नाम की अप्सरा की नजर उन पर पड़ी और वह ऋषि मेधावी पर मोहित हो गई। वह ऋषि को मोहित करने के प्रयास में लग गई। इसी बीच कामदेव की नजर अप्सरा पर गई और वह भी उसकी मदद करने लगे। इस तरह अप्सरा ऋषि को आकर्षित करने में सफल हो गई। इससे ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ जीवन यापन करने लगे। कई साल बाद ऋषि को सुधा आई तो उन्हें तपस्या विरत होने का अहसास हुआ। उन्होंने अप्सरा को पिशाचनी बनने का श्राप दे दिया। इससे मंजुघोषा बहुत आहत हो गई और ऋषि से शाप से मुक्त की प्रार्थना करने लगी। इस पर मेधावी ऋषि ने उसे पापमोचिनी एकादशी का उपवास करने की सलाह दी और खुद भी इस व्रत को करने लगे। इससे दोनों श्राप मुक्त हो गए।
व्रत की विधि
इसी दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा होती है। व्रत रखने वाले को पापमोचिनी एकादशी से एक दिन पहले सात्विक भोजन करना चाहिए। उसको व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर सवा मीटर पीले वस्त्र पर भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की मूर्ति, फोटो या कैलेंडर को स्थापित करना चाहिए। उन्हें पीले वस्र धारण कराने चाहिए। इसके बाद व्रत करने वाला भक्त भगवान के दाएं हाथ में चंदन और फूल लेकर सारे दिन के व्रत का संकल्प ले। भगवान को 11 पीले फल, 11 फूल और 11 पीली मिठाई अर्पित करे। उन्हें पीला चंदन और पीला जनेऊ भेंट करे। पीले आसन पर बैठकर भगवत कथा या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से भक्त के पाप कटते हैं।
इस पर ध्यान देना जरूरी
जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत रखता है, उसको दशमी के दिन सादा और सात्विक भोजन करना चाहिए। उसको द्वादशी के दिन प्रात: स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद खुद भोजन करना चाहिए। यह याद रखें कि द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद ही पारण करें।
इस उपवास के लाभ
पापमोचनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को अनजाने में किए गए पाप कर्मों के लिए मिलने वाले दंड से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा इस दिन नवग्रहों की पूजा से सभी ग्रह शुभ परिणाम देते हैं। इस व्रत से चंद्रमा के खराब प्रभाव को रोका जा सकता है। इस व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर पर पड़ता है। इससे अशुभ संस्कारों को भी नष्ट किया जा सकता है।
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