१. लघुहारीत स्मृति और नरसिंह पुराण में कहा गया है कि दूध वाले तथा कांटे वाले वृक्षों के दातुन का उपयोग व्यक्ति को यशस्वी बनाते हैं – “सर्वे कण्टकिन: पुण्या: क्षीरिणश्च यशस्विन:।”

२. अपामार्ग, बेल, आक, नीम, खैर, गुलर, करंज, अर्जुन, आम, साल, महुआ, कदंब,बेर, कनेर व बबूल आदि के दातुन लाभदायक होते हैं लेकिन शमी, पलाश, कपास, कुश, रीठा, बहेड़ा आदि वृक्षों की दातुन नहीं करनी चाहिए। इसकी चर्चा कूर्मपुराण लघुव्यास संहिता, लघुहारीत स्मृति, विश्वामित्र स्मृति, नरसिंह पुराण एवं देवीभागवत आदि ग्रंथों में की गई है। इसमें भी पलाश की लकड़ी के दातुन की सख्त रूप से मनाही की गई है। इस संबंध में विष्णु स्मृति में कहा गया है – “अथ पलाशं दन्तधावनं नाद्यात।”

३. विश्वामित्र स्मृति, कूर्म पुराण, स्कंद पुराण, अत्रि संहिता, बृहत्पराशर स्मृति, वाधूल स्मृति और पद्म पुराण में इस बात की चर्चा मिलती है कि की तर्जनी अंगुली का उपयोग कभी भी दातुन के रूप में नहीं करना चाहिए यानी तर्जनी अंगली से दांत नहीं साफ करना चाहिए – “दन्तस्य धावनं कुर्यान्न तर्जन्या कदाचन्।”

४. बृहत्संहिता, ब्रह्म पुराण, मार्कंडेय पुराण, पद्मपुराण और वृद्धहारीत स्मृति के साथ-साथ विष्णु पुराण में कहा गया है कि दन्तधावन यानी मुंह धोने की प्रक्रिया सदैव उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह करके संपन्न करनी चाहिए न कि पश्चिम और दक्षिण दिशा की ओर – “न दक्षिणापराभिमुख:। अद्याच्चोदंमुख: प्रांमुखो वा।”

५. किसी भी माह की प्रतिपदा, षष्ठी, नवमी और अमावस्या तिथि को वनस्पति यानी पेड़-पौधों की लकड़ी से दातुन नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त रविवार, उपवास के दिन, श्राद्ध के दिन, ग्रहण में और सूर्यास्त के समय भी लकड़ी के दातुन से दांत नहीं साफ करने चाहिए। इस बात की चर्चा नरसिंह पुराण, विष्णु स्मृति, स्कंद पुराण, गरुड़ पुराण, शिव पुराण और महाभारत के अनुशासन पर्व सहित कई ग्रंथों में की गई है। देवी भागवत में तो यहां तक कहा गया है कि जो इन तिथियों को लकड़ी के दातुन का उपयोग करता है वह अपने साथ अपनी आगे आने वाली सात पीढ़ियों के लिए मुसीबत मोल लेता है – “प्रतिपद्दर्शषष्ठीषु नवम्येकादशीरवौ। दन्तानां काष्ठसंयोगात् दहत्यासप्तमं कुलम्।।” इसी देवी भागवत सहित अन्य ग्रंथों में इस बात की भी चर्चा मिलती है कि दन्तधावन के लिए जिन तिथियों का निषेध किया गया है उस दिन १२ अथवा १६ बार कुल्ला करें या जिन वृक्षों के दातुन इस्तेमाल किए जाते हैं उनके पत्ते से या सुगंधित मंजन से दांत साफ करें।

६. स्कंद पुराण में कहा गया है कि महुआ की दातुन का इस्तेमाल करने से पुत्र लाभ एवं आक की दातुन से नेत्रों को फायदा पहुंचता है। इसी तरह बेर की दातुन से प्रवचन करने की शक्ति बढ़ती है जबकि बेल और खैर की दातुन से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिरीष की दातुन से सब प्रकार की संपत्ति प्राप्त होती है जबकि पीपल का दातुन यश प्रदान करने वाला होता है। चमेली का दातुन जाति में प्रधानता को बढ़ाता है –

“मधूके पुत्रलाभ: स्यादर्के नेत्रसुखं प्रिये।
वक्त्रृत्वं वै बदर्या च बृहत्या दुर्जनां जयेत्।
ऐश्वर्यं च भवेद् बिल्वे खदिरे च न संशय:।। …
जातिप्रधानतां जातावश्वत्थो यच्छते यश:।
श्रियं प्राप्नोति निखिलां शिरीषस्य निषेवणात्।।”