कामदा एकादशी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को होती है। सांसारिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस एकादशी का व्रत किया जाता है। इस एकादशी को फलदा एकादशी भी कहा जाता है। नवसंवस्तर में आने के कारण यह वर्षभर में आने वाली सभी एकादशी में सबसे खास होती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति कामदा एकादशी का व्रत करता है उसे प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। साथ ही, उसको वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता है। वाजपेय एक प्रकार का श्रौतयज्ञ है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार यह यज्ञ राजसूय यज्ञ से भी श्रेष्ठ माना गया है।
कामदा एकादशी से जुड़ी कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने राजा युधिष्ठिर की इच्छा जाहिर करने पर उन्हें कामदा एकादशी कथा सुनाई। कथा के अनुसार प्राचीन काल में रत्नपुर नाम का नगर था। वहां का राजा पुण्डरीक था। उसके राज्य में कई अप्सराएं और गंधर्व निवास करते थे। इन्हीं गंधर्वों में एक जोड़ा ललित और ललिता का भी था। ललित तथा ललिता में अपार स्नेह था। एक बार राजा पुण्डरीक की सभा में ललित अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था। गाना गाते समय वह अपनी पत्नी को याद करने लगा जिससे उसका एक पद खराब गया। कर्कोट नाम का नाग भी सभा में ही बैठा था। उसने ललित की इस गलती को राजा को बता दिया। इस राजा ललित पर क्रोधित हो गया और उसनेे उसे राक्षस बनने का श्राप दे दिया। राक्षस बनकर ललित जंगल में घूमने लगा। इससे ललिता को बहुत आघात लगा। वह ललित के पीछ जंगलों में घूमने लगी। इसी दौरान ललिता श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पहुंची। ऋषि ने उससे जंगल में आने का कारण पूछा तो ललिता ने अपने अपनी व्यथा सुना दी। श्रंगी ऋषि ने उसे कामदा एकादशी का व्रत करने को कहा। कामदा एकादशी के व्रत से ललिता का पति ललित वापस गंधर्व रूप में आ गया। इस तरह दोनों पति-पत्नी स्वर्ग लोक जाकर वहां खुशी-खुशी रहने लगे।
व्रत के लाभ
कामदा एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन उपवास करने वाले व्यक्ति को दुख और कष्टों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत-पूजन करने से अधूरी मनोकामनाएं भगवान विष्णु पूरी करते हैं इसलिए इसे फलदा एकादशी भी कहा जाता है। अगर किसी महिला का पति या बच्चा बुरी आदतों का शिकार है और वह कामदा एकादशी का व्रत रखती है तो दोनों की आदतें सुधरे जाएंगी। मान्यता है कि अगर सुहागिन महिलाएं इस व्रत को करती हैं तो उन्हें अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है। मान्यता यह भी है कि अगर किसी कुंवारी कन्या के विवाह में बाधा आ रही है तो इस व्रत को करने से यह बाधा दूर होती है। घर में अगर उपद्रव और कलेश है तो इस व्रत को करने से इससे छुटकारा मिलता है।
पूजा विधि
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। व्रत करने वाले को सुबह उठकर नदी या किसी तीर्थ स्थान पर स्नान करना शुभ माना जाता है। अगर यह संभव न हो तो घर में गंगाजल में पानी मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद व्रत करने वाले को घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति, फोटो या कैलेंडर के समक्ष दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत करने वाले को भगवान को फल, फूल, दूध, पंचामृत और तिल समर्पित करना चाहिए।
इन बातों पर ध्यान देना जरूरी
पूजा में तुलसी दल जरूर होना चाहिए। पूजन में सत्य नारायण की कथा पढ़नी चाहिए। भगवान आरती कर भोग लगाना चाहिए। व्रत रखने वाले भक्त को अनाज का सेवन ग्रहण नहीं करना चाहिए। अगले दिन अर्थात् द्वादश को ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।
अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें