योगिना एकादशी का व्रत करने से मुनष्य को अपने जीवन में हर सुख-सुविधा हासिल होती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने वाला आनंदमय जीवन जीता है। उसे सभी ऐशो आराम आसानी से मिलते हैं। साथ ही, अंत काल में उसे सद्गति यानि मोक्ष की प्राप्ति होती है। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। योगिनी एकादशी के व्रत को महाव्रत भी कहा जाता है। महाभारत काल में भी इस व्रत की महिमा का वर्णन मिलता है। मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस दिन व्रत कर भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजन और ध्यान करता है, उसको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।

योगिना एकादशी की कथा
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई गई थी। इस कथा के अनुसार स्वर्गलोक की अलकापुरी में राजा कुबेर राज करते थे। वे भगवान शिव के उपासक थे और रोजाना उनकी पूजा करता थे। कुबेर द्वारा की जाने वाली शिव की पूजा के लिए हेम नाम का माली फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज कुबेर को फूल पहुंचाता था। एक दिन वह बगीचे से फूल तोड़ने के बाद घर पहुंचा और अपनी पत्नी को देखकर कामांध हो गया। इसी बीच कुबेर के पूजा करने का समय बीत गया। इससे क्रोधित होकर उसने अपने सैनिकों को हेम के घर भेजा। वहां से लौटकर सैनिकों ने कुबेर को बताया कि हेम अपनी पत्नी के साथ शयन कक्ष में है। इस पर राजा ने हेम को सभा में बुलाया और कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया। श्रापित होकर हेम पृथ्वी पर पहुंच गया। एक दिन घूमते-घूमते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उसने ऋषि के पैरों पर गिरकर अपनी सारी व्यथा सुनाई और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। इस पर ऋषि ने उसे बताया कि अगर वह योगिनी एकादशी का विधि-विधान से व्रत कर पूजन करेगा तो उसे इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी। हेम ने इस व्रत को किया और वह फिर से अपनी पत्नी के साथ सुखमय जीवन जीने लगा।

ऐसे करें पूजन

योगिना एकादशी को विष्णु भगवान और पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने वाला मनुष्य ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर स्नान करने के बाद धोती या लूंगी धारण कर चौकी या घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति, फोटो या कैलेंडर स्थापित करे। धोती या लूंगी पीली हो तो अति उत्तम। व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान श्रीहरि विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बााद पीले फूल और तुलसी दल चढ़ाएं। पूजना के बाद चरणामृत को व्रत करने वाला अपने ऊपर तथा परिवार के सदस्यों पर छिड़के। मान्यता है कि इससे सभी रोगों से छुटकारा मिलता है। धूप दिखाकर भगवान की आरती उतारें। तत्पश्चात पीपल के पेड़ का पूजन करें। इस उपवास को केवल जल और फल पर रखें।

उपवास के नियम
एकादशी से एक दिन पहले दशमी तिथि को बिना लहसुन- प्याज का सादा भोजन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। व्रत वाले दिन योगिनी एकादशी की कथा जरूर सुनें। रात में सोने के बजाए भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें। अगले दिन यानि द्वादशी के दिन प्रात: स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद खुद भोजन करना चाहिए। यह याद रखें कि द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद ही पारण करें।

उपवास के लाभ
मान्यता है कि योगिना एकादशी के दिन तिल का उबटन लगाकर स्नान करना शुभ होता है। इस दिन पीपल का पौधे लगाना भी शुभकारी माना जाता है। मान्यता है कि 88 हजार ब्रह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है, वही फल योगिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। इसकी के चलते यह उपवास तीनों लोक में प्रसिद्ध है।

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