१. वाधूलस्मृति में कहा गया है कि – “स्नानमूला: क्रिया: सर्वा: सन्ध्योपासनमेव च। स्नानाचारविहीनस्य सर्वा: स्यु: निष्फला: क्रिया:।।” यानी स्नान किए बिना जो पुण्य कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता है।

२. चाणक्य नीति में कहा गया है – “तैलाभ्यंगे चिताधूमे मैथुने क्षौरकर्मणि। तावद्भवति चाण्डालो यावत्स्नानं न चाचरेत्।” अर्थात् तेल लगाने के बाद, शमशान से लौटने पर, स्त्री संग करने पर, क्षौरकर्म यानी बाल-दाढ़ी कटवाने के बाद मनुष्य जब तक स्नान नहीं करता तब तक वह शारीरिक रूप से अशुद्ध रहता है।

३. मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, बृहत्पराशरा स्मृति, पराशर स्मृति सहित कई ग्रंथों एवं विष्णु स्मृति में कहा गया है कि दु:स्वप्न देखने, हजामत बनवाने, वमन होने, मैथुन करने और श्मशान भूमि में जाने पर वस्त्र सहित स्नान करना चाहिए – “चिताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नानमाचरेयु:। मैथुने दु:स्वप्ने रुधिरोपगतकण्ठे वमनविरेकयोश्च। श्मश्रुकर्मणि कृते च।” ज्योतिष शास्त्र में भी शकुन विचार के अंतर्गत कहा गया है कि यदि कोई बुरा स्वप्न देखता है तो वह उस स्वप्न के दुष्प्रभाव को मिटाने के लिए वस्त्र सहित स्नान करें।

४. महाभारत में कहा गया है कि नदी में मुंह उस तरफ करके स्नान करना चाहिए जिस तरफ से नदी की धारा आती हो जबकि अन्य जलाशयों में स्नान करते वक्त मुंह सूर्य की ओर रखना चाहिए – “स्रवन्ती चेत् प्रतिस्रोते प्रत्यर्कं चान्यवारिषु। मज्जेदोमित्युदाहृत्य न च विक्षोभयेज्जलम्।”

५. अग्नि पुराण में कहा गया है कि कुएं के जल की अपेक्षा झरने का जल पवित्र होता है। झरने के जल से ज्यादा पवित्र सरोवर का जल होता है, सरोवर से ज्यादा पवित्र नदी का जल बताया गया है, नदी के जल से ज्यादा पवित्र तीर्थ स्थलों का जल होता है और गंगा का जल सबसे पवित्र होता है – “भूमिष्ठमुद्धृतात् पुण्यं तत: प्रस्रवणोदकम्। ततोऽपि सारसं पुण्यं तस्मान्नादेयमुच्यते।। तीर्थतोयं तत: पुण्यं गांगं पुण्यन्तु सर्वत:।”

६. वामन पुराण, शांडिल्य स्मृति, मनुस्मृति और महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि पुरुष को सिर से स्नान करना चाहिए। सिर को छोड़कर स्नान नहीं करना चाहिए। सिर के ऊपर से ही स्नान करके पितृ कार्य और देव कार्य करने चाहिए – “शिर:स्नातोऽथ कुर्वीत दैवं पित्र्यमथापि च।”

७. मार्कंडेय पुराण के अनुसार – “नानुलेपनमादद्यान्नास्नात: कर्हिचिद् बुध:।” यानी बिना स्नान किए कभी भी चंदन या किसी तरह का तिलक नहीं लगाना चाहिए।

८. पद्म पुराण में कहा गया है – “एकादश्यां पक्षयुगे धात्रीस्नानं करोति य:। सर्वपापं क्षयं याति विष्णुलोके महीयते।।” अर्थात जो व्यक्ति दोनों पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी को आंवले से स्नान करता है उसके सभी पाप शमित हो जाते हैं और वह विष्णु लोक का अधिकारी हो जाता है।

९. स्कंद पुराण, मार्कंडेय पुराण, ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण में कहा गया है कि स्नान के बाद शरीर को हाथों से नहीं पोंछना चाहिए। वाधूलस्मृति और स्कंद पुराण में कहा गया है कि स्नान के समय पहने हुए भीगे वस्त्र से शरीर को नहीं पोंछना चाहिए। ऐसा करने से शरीर कुत्ते के जीभ से चाटे हुए के सामान अशुद्ध हो जाता है जो पुन: स्नान करने से ही पवित्र होता है।

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