पुत्रदा एकादशी की महिमा अपरमपार है। पुत्रदा एकादशी श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में दशमी के अगले दिन होती है। इस व्रत को करने वाले दंपति को पुत्र सुख की प्राप्ति होती है। संतान सुख की इच्छा रखने वाले दंपति को यह व्रत जरूर करना चाहिए। इस व्रत की कथा सुनने से पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने वाले जातक संतान सुख को भोगकर अंतकाल में स्वर्ग जाते हैं।
पुत्रदा एकादशी की था
भगवान कृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई गई कथा के अनुसार महिष्मति नाम का राज द्वापर युग में मीजित राज्य में राज करता था। उसको कोई पुत्र नहीं था। इसके चलते वह परेशान रहता था। उसने पुत्र प्राप्ति के लिए कई उपाय किए लेकिन उसको कोई सफलता नहीं मिली। राजा काफी परोपकारी था। समय बीतता गया। राजा वृद्ध होने लगा तो उसे ज्यादा चिंता सताने लगी। एक दिन उसने अपनी चिंता के बारे में सभा में चर्चा की। इस पर राजा के मंत्री राजा की चिंता का उपाय खोजने के लिए कई ऋषियों के आश्रम में गए। इनमें से एक मंत्री लोमश मुनि के आश्रम में पहुंचा। वह काफी बड़े तपस्वी थे। उन्होंने मंत्री से आने का कारण पूछा। मंत्री ने बताया कि उनके राजा के पुत्र नहीं है। वह प्रजा का पालन संतान की तरह करते हैं। फिर भी उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही है। आप राजा का कष्ट दूर करने का उपाय बताएं। इसके बाद मुनि ने ध्यान लगाया। कुछ देर बाद उन्होंने अपनी आंखें खोलीं। इसके बाद मुनि ने मंत्री को बताया। तुम्हारे राजा को पूर्व जन्म की करनी का फल इस जन्म में भोगना पड़ रहा है। तुम्हारा राजा पूर्व जन्म में स्वार्थी वैश्य था। उसके पास धन का अभाव था। ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष में एक दिन वह काफी भूखा-प्यास था। वह एक नदी के पास पहुंचा तो वहां एक गाय पानी पी रही थी। उसने गाय को भगा दिया और खुद पानी पीने लगा। इस पाप का फल वह इस जन्म में बिना पुत्र के भोग रहा है। मंत्री ने मुनि से इस पाप के प्रायश्चित का उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम्हारा राजा श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी यानि पुत्रदा एकादशी का व्रत करे तो वह पाप मुक्त हो जाएगा और उसे पुत्र सुख मिलेगा। मंत्री ने लौटकर सारी बात राजा को बताई। इसके बाद राजा ने मुनि के बताए अनुसार श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी यानि पुत्रदा एकादशी का व्रत विधि-विधान से किया। व्रत के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और उनके यहां पुत्र का जन्म हुआ।
कैसे करें पूजन
इस दिन व्रत करने वाले दंपति दशमी के दिन सूर्योस्त के बाद भोजन न करें। पति-पत्नी ब्रह्म मूहुर्त में उठें और स्नान करें। स्नान करने से पहले दातून करें ताकि मुंह में कोई जुठन ना बचे। स्नान के बाद संभव हो तो पति पीले वस्त्र या लूंगी धारण करे और पत्नी साड़ी पहने । पूजन स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति, फोटो या कैलेंडर स्थापित कर उन्हें पीले फूलों की माला चढ़ाए, धूप, दीप, नैवेध, पीले फल और तुलसी दल अर्पित करके उनकी आरती करें। पूरे दिन आहार ग्रहण न करें। शाम को कथा सुनने के बाद आरती करके फलाहार करें।
इस पर ध्यान देना जरूरी
इस व्रत को करने वाले दंपति को दशमी के दिन से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। दशमी को तामसी भोजन न करें। रात में सोने से पहले भगवान विष्णु का स्मरण करें। इसके अलावा ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन शाम के वक्त फलाहार करें। एकादशी की रात को भगवान का भजन-कीर्तन करें। अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराकर दान दें। इसके बाद ही खुद भोजन ग्रहण करें।
व्रत के लाभ
मान्यता है कि इस व्रत को करने से निसंतान दंपति को संत की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने वाले दंपतियों को हजारों साल की तपस्या के बराबर फल मिलता है। इस व्रत को करने वाले इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक में जाते हैं। इस व्रत की कथा सुनने और पूजन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के बराबर फल मिलता है।