निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आती है। इस दिन पानी पीने की मनाही है इसलिए इसका नाम निर्जला एकदशी पड़ा। इसको भी सेनी एकादशी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में पांडव पुत्र भीम ने इस दिन उपवास किया था जबकि वह बिना भोजन नहीं रह सकते थे। इस एकादशी का व्रत रखने से समूची एकादशी के व्रतों के फल की प्राप्ति होती है। यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों को ही करना चाहिए। इस एकादशी का व्रत भी भगवान विष्णु को समर्पित होता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है।

निर्जला एकादशी से जुड़ी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन महर्षि व्यास ने पांडवों को 24 एकादशी व्रत महिमा के बारे में जानकारी दी और इन व्रत को करने का आह्वान किया। इस पर भीम ने महर्षि से कहा कि मैं भूखा नहीं रह सकता हूं इसलिए मेरे लिए यह व्रत कर पाना संभव नहीं है। अत: आप मुझे कुछ ऐसा बताएं जिसे मैं सहज होकर कर सकूं और मुझे 24 एकादशी के व्रत के बराबर फल की प्राप्ति हो।

महर्षि व्यास को पता था कि भीम के उदर में वृक नामक अग्नि है इसीलिए वह भूखा नहीं रह सकता है। इस पर महर्षि व्यास ने भीम को ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का एक व्रत करने के लिए कहा क्योंकि इस व्रत में स्नान आचमन के समय पानी पीने का दोष नहीं होता। उन्होंने भीम से कहा कि यह व्रत करने से 23 एकादशी पर अन्न खाने का दोष छूट जाएगा तथा पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलेगा। भीम मात्र एक एकादशी का व्रत करने के लिए महर्षि के सामने प्रतिज्ञा कर चुके थे, इसलिए इस व्रत को करने लगे। इसी कारण इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

पूजा विधि
इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का विधान है। व्रत करने वाला व्यक्ति ब्रह्म मूहुर्त में उठे और स्नान करे। वैसे इस दिन पवित्र नदियों में स्नान की मान्यता है। अगर ऐसा संभव न हो तो स्नान करते वक्त सभी नदियों का नाम लें। स्नान के बाद पूजन स्थान पर शेषशय्या पर विराजमान भगवान विष्णु की मूर्ति, फोटो या कैलेंडर स्थापित कर उन्हें लाल फूलों की माला चढ़ाएं, धूप, दीप, नैवेद्य, फल अर्पित करके उनकी आरती करें। बिना अनाज और जल के 24 घंटे के व्रत का संकल्प लें। ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें। शाम को तुलसी के पास दीपक जलाएं और परिक्रमा करें। अगले दिन सूर्योदय के बाद यानी द्वादशी को ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन करवाने के बाद खुद अन्न और जल ग्रहण करें।

इन बातों पर ध्यान देना जरूरी
इस दिन घर में लहसुन और प्याज से भोजन न बनाएं। उपवास से एक दिन पहले यानि दशमी तिथि को सिर्फ सात्विक भोजन करें। व्रत करने वाले के लिए दशमी और एकादशी को ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। इस व्रत में साफ-सफाई का विशेष महत्व होता है इसलिए इस पर जरूर ध्यान दें।
इस एकादशी व्रत को करके यथासंभव अन्न, वस्त्र, छतरी, जूता, हाथ पंखा तथा फल का दान करें। इस दिन जल कलश या घड़े का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशी का फल मिलता है।

इस उपवास के लाभ
मान्यता है कि इस एकादशी के दिन निर्जल उपवास करने से सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है। इस उपवास का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति जब शरीर को त्यागता है तो उसको यमदूत नहीं घेरते बल्कि वह भगवान के आशीर्वाद से पुष्पक विमान में बैठाकर स्वर्ग जाता है।

अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें

Sarvabhoot Sharanam
LGF – 58, Ansal Fortune Arcade, Sector – 18
Noida, Uttar Pradesh 201301
 

Leave a comment