ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को अपरा या अचला एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु का पूजन करने वाले भक्त को अपार धन संपत्ति और ख्याति प्राप्त होती है। साथ ही, भक्त को सुखमय जीवन मिलता है। इसके अलावा पाप कर्मों से छुटकारा मिलता है। इस एकादशी का व्रत करने से मुनष्य को प्रेत योनि के कष्ट नहीं भुगतने पड़ते हैं। वह भवसागर तर जाता है। पुराणों के अनुसार इस उपवास को करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा अपरा एकादशी का व्रत रखने से जीवन में चली आ रही धन की बाधा से राहत मिलती है। मनुष्य अगले जन्म में व्यक्ति धनी घर में पैदा होता है।

अपरा एकादशी से जुड़ी कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक धर्मात्मा राजा था लेकिन उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही दुष्ट और पापी था। वह अपने बड़े भाई से बैर रखता था। उसने एक दिन अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और शव को जंगल में ले जाकर पीपल के पेड़ के नीचे दबा दिया। इसके बाद वह नगर पर राज करने लगे। उसने प्रजा पर जुर्म करने शुरू कर दिए जिससे लोग उससे दुखी रहने लगे। वहीं, असामयिक मृत्यु के कारण राजा महीध्वज प्रेता बन उसी पीपल पर रहने लगा।

अचानक एक दिन धौम्य नामक ऋषि पीपल के पेड़ के पास से गुजरे तो उनकी नजर प्रेत पर पड़ गई। ऋषि ने अपने तपोबल से प्रेत के अतीत को जान लिया। ऋषि ने उसका भविष्य सुधारने की ठान ली। उन्होंने प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। ऋषि ने उसको प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया। इसके अलावा प्रेत को उत्पात न करने के लिए प्रेरित किया। ऋषि के व्रत के पुण्य से राजा महीध्वज को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई।

उपवास की पूजा विधि
पुराणों के अनुसार व्रत करने वाले मनुष्य को दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। उसको रात में भगवान का ध्यान कर सोना चाहिए। उसको एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागकर स्नान करना चाहिए। अपने घर के मंदिर में भगवान विष्णु और बलराम की मूर्ति, फोटो या कैलेंडर के सामने दीया जलाकर तुलसीदल, श्रीखंड चंदन, गंगाजल व फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए। इसके बाद धूप दिखाकर आरती करनी चाहिए। एकादशी की कथा पढ़नी चाहिए। अगर संभव हो तो विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। इससे विशेष कृपा प्राप्त होती है।

इन बातों पर ध्यान देना जरूरी
इस व्रत को करने वाले मनुष्य को रात के समय सोना नहीं चाहिए। उसे व्रत के अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन करा दक्षिणा देनी चाहिए। इसके बाद अन्न और जल ग्रहण करना चाहिए। व्रत रखने वाले भक्त को दूसरों की बुराई नहीं करनी चाहिए। उसको झूठ और छल-कपट से दूर रहना चाहिए। व्रत नहीं करने वाले मनुष्यों को भी एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए।

व्रत के लाभ
मान्यता है कि अपरा एकादशी का उपवास करने से ब्रह्म हत्या के पास से मुक्ति मिलती है। अकाल मृत्यु के चलते भूत और प्रेत बने लोगों को इस योनि से मुक्ति मिलती है। दूसरे की निंदा करने से जुड़े पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन के पाप का प्रयशिचत होता है। अपरा एकादशी का व्रत करने वाले को गंगा के किनारे पितरों को पिंडदान देने के बराबर फल मिलता। इस व्रत का फल कुंभ में केदारनाथ या बद्रीनाथ के दर्शन और सूर्यग्रहण में सोने के दान करने के समान है।

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