मोहिनी एकादशी को पुराणों में श्रेष्ठ बताया गया है। यह एकादशी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने अमृत कलश को दानवों से बचाने के लिए मोहिनी का रूप वैशाख में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन ही धारण किया था। इसकी चलते मोहिनी एकादशी के दिन व्रत करना बेहद शुभ फलदायी माना गया है। इस व्रत से न केवल मोह-माया के बंधन छुटकारा मिलता है बल्कि अनजाने में हुए पापों का भी नाश होता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और मोक्ष प्राप्त करने का रास्ता भी खुलता है।

मोहिनी एकादशी से जुड़ी कथा
मान्यता के अनुसार इस व्रत की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी जिसके अनुसार सरस्वती नदी के किनारे प्राचीन समय में भद्रावती नाम का नगर था। यहां का राजा धृतिमान बहुत ही पुण्य करता था। इसी नगर में धनपाल नाम का वैश्य भी रहता था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसके पांच बेटे थे। इनमें चार बेटे सत्कर्मी थे और पिता के बताए रास्ते पर चलते थे लेकिन सबसे छोटा बेटा धृष्टबुद्धि हमेशा गलत कामों में लिप्त रहता था। तंग आकर पिता और चारों भाइयों ने उससे नाता तोड़ लिया, इससे धृष्टबुद्धि दर-दर की ठोकरें खाने लगा। इसी बीच भटकते-भटकते वह कौण्डिल्य ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई। वहऋषि के चरणों में गिर गया। उनसे पापों से छूटने का उपाय पूछने लगा। इस पर ऋषि ने उसे वैशाख शुक्ल की मोहिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। वह ऋषि द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत करने लगा। इससे उसके सब पाप खत्म हो गए। अंत काल में वह विष्णुलोक गया।

पूजा विधि
मोहिनी एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा होती है। व्रत करने वाले व्यक्ति को इस दिन सुबह जल्दी उठकर घर और पूजा स्थान की सफाई करनी चाहिए। स्नान करने के बाद अगर संभव हो तो लूंगी या धोती पहनकर व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर या चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति, फोटो या कैलेंडर स्थापित कर गाय के घी का दीया जलाएं। भगवान को पीले फल, फूल और मिष्टान्न का भोग लगाएं। 11 केले और शुद्ध केसर अपर्ति करना भी शुभ माना गया है। पूजा करते वक्त तुलसी के पत्ते अवश्य रखें। इसके बाद धूप दिखाकर भगवान विष्णु की आरती उतारें। अगर संभव हो तो आसन पर बैठकर ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जाप करें। केले छोटे बच्चों में बाटें और केसर का तिलक बच्चों के माथे पर लगाएं।

इन बातों पर ध्यान देना जरूरी

यह व्रत निर्जला करें। गाय के घी का एक दीपक शाम को तुलसी के पास जलाएं। रात में सोए नहीं बल्कि भगवान विष्णु का पूजन-कीर्तन करें। अगले दिन सर्योदय के बाद पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराएं और दक्षिणा देकर विदा करें। इसके बाद अन्न और जल ग्रहण करें।

ये काम बिलकुल न करें
मांस, मसूर की दाल, चने की सब्जी और शहद का सेवन न करें। भोजन के लिए कांसे के बर्तन का इस्तेमाल न करें। जुआ नहीं खेलें। पान खाना और दातुन भी वर्जित है। कामवासना का त्याग करें।

उपवास के लाभ
संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत से पापकर्मों से छुटकारा मिला और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि भगवान राम ने मां सीता को खोजने के लिए मोहिनी एकादशी व्रत किया था। महाभारत काल में युद्धिष्ठिर ने भी अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए इस एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से किया था।

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