वरुथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में आती है। इस दिन व्रत रखकर पूजा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से इस लोक के साथ परलोक में भी पुण्य मिलता है। इस उपवास को करने वाले व्यक्ति को सौभाग्य के साथ-साथ मोक्ष भी मिलता है। व्रत करने वाले के घर-परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस व्रत को करने से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से बच्चे दीर्घायु होते हैं। उनके जीवन में कोई समस्या नहीं आती है। वे दुर्घटना से भी बचते हैं।
वरुथिनी एकादशी से जुड़ी कथा
प्राचीन काल में नर्मदा तट पर राजा मांधाता का राज्य था। राजा बहुत दानी और तपस्वी था। एक बार वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, उसी समय एक भालू आया और उनके पैर खाने लगा लेकिन इससे राजा की तपस्या पर कोई असर नहीं पड़ा। थोड़ी देर बाद भालू राजा को घसीटकर वन में ले गया। असहनीय दर्द होने पर राजा घबरा गया और भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगा। भक्त की पुकार सुनकर भगवान ने दर्शन दिए और अपने सुदर्शन चक्र से भालू को मार दिया। इसके बाद भगवान ने राजा कहा, पूर्व जन्म के अपराध के चलते तुमने अपने पांव गंवाए हैं इसलिए तुम मथुरा में मेरी वाराह मूर्ति की पूजा वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत रखकर करो। तुम्हारे पांव बिलकुल ठीक हो जाएंगे। राजा ने भगवान की आज्ञा का पालन किया और वह फिर से स्वस्थ हो गया। उसके पांव भी ठीक हो गए।
व्रत की विधि
वरुथिनी एकादशी को भगवान विष्णु के व्रत और पूजन का विधान है। इस व्रत को करने वाला भक्त सुबह उठकर गंगाजल में नल, कुएं, पोखर या तालाब का जल डालकर स्नान करे। यहां यह याद रखा जरूरी है कि पानी में गंगाजल नहीं मिलाना है। पहले गंगाजल डालना फिर पानी मिलाना है। मान्यता है कि गंगाजल में कोई भी पानी मिला दो वह गंगाजल बन जाता है। पानी में गंगाजल मिलने से गंगाजल पानी बन जाता है। भक्त स्नान के बाद सफेद कपड़े पहने। अगर धोती या लूंगी हो तो उत्तम। इसके बाद व्रती व्यक्ति एक कलश की स्थापना करे। उसके ऊपर आम के पत्ते, नारियल, लाल चुनरी बांधकर भगवान विष्णु की मूर्ति या फोटो के आगे रख दे। धूप, दीपक जलाकर बर्फी, खरबूजा और आम का भोग लगाएं और भगवान का स्मरण करे। यदि मंत्र पढ़ सकते हैं तो कम से कम 108 बार ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। इसके अलावा विष्णु सहस्रनाम का जाप कर सकते हैं।
इन बातों पर ध्यान देना जरूरी
इस व्रत में नमक, तेल अथवा अन्न वर्जित है। यह व्रत अगले दिन पूजा पाठ करके ही खोला जाता है और तब तक केवल एक बार फलाहार करना होता है। व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद यानी द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद खुद भोजन करना चाहिए।
ये काम बिलकुल न करें
कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करें। इस व्रत में मांस, मसूर की दाल, चने का साग और शहद का सेवन वर्जित है। इस दिन किसी जीव को न मारें और दूसरी बार भोजन नहीं करें। इसके अलावा स्त्री के संपर्क से दूर रहना चाहिए। व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए। उस दिन पान खाना, दातुन करना और दूसरे की निंदा भी नहीं करनी चाहिए।
इस व्रत के लाभ
अगर कोई अभागिन महिला इस व्रत को करती है तो उसको सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत का फल दस हजार वर्ष की तपस्या के बराबर होता है। मान्यता है कि व्रत की कथा पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी ज्यादा है।
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