हर महीने में दो एकादशी होती हैं। इस प्रकार वर्ष के 365 दिनों में मात्र 24 बार ही एकादशी व्रत होता है लेकिन प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होने से दो एकादशी बढ़ जाती हैं। अधिकमास माह में पद्मिनी (कमला) एवं परमा एकादशी आती है। शुक्ल पक्ष की एकादशी अमावस्या से ग्यारहवहीं तिथि को होती है। इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की एकादशी पूर्णिमा से ग्यारहवहीं तिथि को होती है।
एकादशी का व्रत, जो भी व्यक्ति श्रद्धा, विश्वास और विधि-विधान से रखता है, उसको धर्म, मोक्ष और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को रखने वाले को संकट से मुक्ति मिलती है और सभी काम सिद्ध होते हैं। इसके अलावा उसके पास धन और समृद्धि बनी रहती है। स्कंद पुराण के अनुसार मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पितरों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।
कब कौन सी एकादशी
- चैत्र
कामदा और पापमोचिनी एकादशी - वैशाख
वरुथिनी और मोहिनी एकादशी - ज्येष्ठ
अपरा और निर्जला एकादशी - आषाढ़
योगिनी और देवशयनी एकादशी - श्रावण
कामिका और पुत्रदा एकादशी - भाद्रपद
अजा और परिवर्तिनी एकादशी - आश्विन
इंदिरा और पापांकुशा एकादशी - कार्तिक
रमा और प्रबोधिनी एकादशी - मार्गशीर्ष
उत्पन्ना और मोक्षदा एकादशी - पौष
सफला एवं पुत्रदा एकादशी - माघ
षटतिला और जया एकादशी - फाल्गुन
विजया और आमलकी एकादशी - अधिकमास
पद्मिनी (कमला) एवं परमा एकादशी
नियम
मान्यता के अनुसार एकादशी का व्रत तीन दिन चलता है। व्यक्ति को उपवास से एक दिन पहले केवल दोपहर में भोजन करना चाहिए। इसके बाद अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन सर्योदय के साथ कठोर उपवास रखें और अगले दिन सूर्योदय के बाद अन्न ग्रहण करें। व्रत के दौरान सभी प्रकरण के अन्न का ग्रहण वर्जित है। लोग अपनी क्षमता के अनुसार बिना पानी, पानी ग्रहण कर और फल का सेवन कर व्रत रख सकते हैं। जो लोग बिना खाए-पिए नहीं रह सकते, वे ताजे फल, मेवे, चीनी, नारियल, नारियल पानी, दूध, आलू और शकरकंद का सेवन कर सकते हैं।
नोट : अगली कड़ी में एक-एक एकादशी पर विस्तार से जानकारी दी जाएगी
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