जब जन्मकुंडली में चंद्रमा के दोनों ओर यानी दूसरे और बारहवें भाव में ग्रह स्थित होते हैं तो दुरुधरा योग बनता है। इस योग में भी सूर्य की गणना नहीं होती। केवल मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि- यह पांच ग्रह युति बनाकर या अकेले भी चंद्रमा से दूसरे तथा बारहवें भाव में स्थित होंगे, तब दुरुधरा योग निर्मित होगा। यदि सूर्य दोनों में किसी भी एक भाव में होगा तो दुरुधरा योग भंग हो जाएगा। इसका कारण यह है कि सूर्य के नजदीक होने से चंद्रमा निर्बल हो जाता है। ऐसे चंद्रमा को पाप पीड़ित भी कहा जाता है। कई विद्वान यह भी मानते हैं कि चन्द्र से दोनों केंद्र यानी चतुर्थ और दशम भाव में भी ग्रह हों तो दुरुधरा योग बनता है।

योग का प्रभाव

जैसा कि विदित है कि चंद्रलग्न भी जन्मलग्न जितना ही महत्वपूर्ण है और उसी के समान फल देता है। जब चंद्रमा के दोनों ओर ग्रह स्थित होंगे तो चंद्रलग्न को बल मिलेगा, जिससे वह और मजबूत होगा। इसके परिणामस्वरूप फल प्राप्ति में वृद्धि होगी। हालांकि फल प्राप्ति कैसी होगी, यह दोनों भावों में उपस्थित ग्रहों के स्वभाव पर पूरी तरह निर्भर करता है।

ग्रहों का चन्द्र से द्वितीय, द्वादश होना चन्द्र में कार्य करने की शक्ति को बढ़ा देता है। यह कार्य और अधिक शुभ उस स्थिति में होगा, जब चंद्रमा के दोनों ओर दो नैसर्गिक शुभ ग्रह हों।

एक लग्न में 100 प्रकार से अधिक दुरुधरा योग

किसी भी लग्न में ग्रहों की युति से कई तरह के दुरुधरा योग बनते हैं। मान लीजिए कर्क लग्न की कुंडली के दूसरे भाव यानी सिंह राशि में चंद्रमा स्थित है। उससे दूसरे भाव में कन्या राशि में अकेला बुध और चंद्रमा से 12वें यानी लग्न अर्थात कर्क राशि में गुरु स्थित है। यह दुरुधरा योग अति शुभ होगा, क्योंकि बुध और गुरु दोनों अपनी उच्च राशि में होंगे और चंद्रमा उच्चतम शुभ मध्यत्व प्रभाव में होगा। चूंकि चंद्रमा लग्नेश भी है, इससे लग्नेश और लग्न दोनों अत्यधिक मजूबत हो जाएंगे। परिणामस्वरूप शुभ फलों की प्राप्ति अधिक होगी।

इसके विपरीत अब मान लीजिए बुध चंद्रमा से 12वें यानी कर्क राशि और गुरु कन्या राशि में स्थित हैं। इस दुरुधरा योग का फल ऊपर बताए गए फल से भिन्न होगा, क्योंकि गुरु और बुध दोनों अपनी शत्रु राशि में होंगे। हालांकि चंद्रमा पर शुभ मध्यत्व अवश्य रहेगा, लेकिन शुभ फल प्राप्ति में कुछ कमी आ जाएगी।

एक अन्य उदाहरण में धनु लग्न की कुंडली हो और चंद्रमा लग्न में बैठा हो। दूसरे भाव में मकर राशि में मंगल उच्च का होकर बैठा हो। बारहवें भाव में वृश्चिक राशि में गुरु बैठा हो, जो उसकी मित्र राशि है। इस दुरुधरा योग का फल अलग होगा। अब दूसरे भाव में गुरु को मान लें, जो नीच का होगा और 12वें भाव में मंगल को, जो अपनी राशि में होगा, यहां दोनों का फल बदल जाएगा।

इस प्रकार एक लग्न में ग्रहों की स्थिति, उनके परिवर्तन और युति से 100 प्रकार से अधिक दुरुधरा योग बनते हैं। सभी का प्रभाव भी अलग-अलग होता है।

दुरुधरायोग का फल

बृहज्जातक के अनुसार
उत्पन्नभोग-सुख-भुग्धन-वाहानाढ्य-,
स्त्यागान्वितो दुरुधरा प्रभव सुभृत्य:।

अर्थात् – जन्म से ही सुख भोगने वाला धन और वाहनों से युक्त त्यागशील, नौकर-चाकरों वाला, ऐसा मनुष्य दुरुधरा योग मे उत्पन्न होता है।

दुरुधरा योग का फल योग बनाने वाले ग्रहों की प्रकृति, गुण और स्वभाव पर निर्भर करता है। अधिकाशंतः ऐसा मनुष्य सुख भोग करने वाला, धनी होता है। उसके पास उत्तम वाहन होता है।

sarvabhoot sharanam ji

अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें

Sarvabhoot Sharanam
LGF – 58, Ansal Fortune Arcade, Sector – 18
Noida, Uttar Pradesh 201301
 
Contact Number: 088009 00746

Leave a comment