जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली की विवेचना की जाती है तो उसमें चंद्रलग्न की भी विशेष महत्ता रहती है। चंद्रलग्न, जन्मलग्न के तुल्य ही फल प्रदान करता है, इसलिए कुंडली में किसी भाव संबंधी वस्तु या बातों के सटीक कथन के लिए उसे जन्म और चंद्र लग्न दोनों से परखना अनिवार्य हो जाता है।

अच्छी और मजबूत कुंडली के लिए जिस तरह लग्न का बलशाली होना अनिवार्य है, उसी तरह चंद्र और चंद्र लग्न में भी बल होना चाहिए, तभी जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होगी। हम आपको चंद्र और चंद्रलग्न से बनने वाले चार विशेष योगों की जानकारी दे रहे हैं, जिनके प्रभाव से जातक को शुभ और अशुभ फलों की प्राप्ति होती है।

ये चार योग हैं – सुनफा, अनफा, दुरुधरा और केमद्रुम।
इस लेख के प्रथम भाग में हम सुनफा और अनफा योग की विवेचना करेंगे।

कुंडली में चन्द्र जिस भाव और राशि में स्थित होता है, उसको चन्द्र लग्न कहते है। ज्योतिष के आचार्यों का स्पष्ट मत है कि यदि चन्द्र किसी भी ग्रह के प्रभाव में न हो तो वह निर्बल समझा जाना चाहिए। निर्बल चन्द्र का अर्थ है लग्न का निर्बल होना। जब लग्न कमजोर होगा तो जातक को धन, स्वास्थ्य, यश, बल संबंधी समस्याओं से निरंतर जूझना पड़ता है। चंद्र के विषय में यह मौलिक सिद्धांत है।

लघु जातक के अनुसार –
“रविवर्ज द्वादशगैरनफा चन्द्राद्वितीयगै: सुनफा ।
उभयस्थितै: दुरुधरा केमद्रुमसंज्ञकोऽतोन्य: ॥”

अर्थात्- सूर्य को छोड़कर जब कोई ग्रह चन्द्र से द्वादश स्थान में हो तो अनफा योग बनता है। इसी तरह सूर्य के अतिरिक्त कोई ग्रह चन्द्र से द्वितीय स्थान में हो तो सुनफा योग का निर्माण होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन दोनों योग में सूर्य को शामिल नहीं किया जाता। सूर्य को छोड़कर मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि केवल इन पांच ग्रहों का चंद्र से द्वितीय या द्वादश भाव में एक साथ या अकेले स्थित होना अनिवार्य है तभी सुनफा और अनफा योग बनेगा।

सूर्य को छोड़ने का कारण यह है कि इसके नजदीक होने से चंद्रमा पक्ष बल में अति निर्बल हो जाता है और शुभ फल देने में असमर्थ हो जाता है।

कई विद्वानों का कहना है कि चंद्र से केंद्र में स्थित ग्रहों से भी सुनफा-अनफा योग बनता है। यदि चन्द्र से पिछले (दशम भाव) केन्द्र में ग्रह हो तो ‘अनफा’ और अगले (चतुर्थ भाव) केन्द्र में ग्रह हो तो ‘सुनफा’ योग बनता है।

योग का प्रभाव

अनफा और सुनफा योग का स्वरूप मुख्यतः दूसरे और 12वें भाव में स्थित ग्रहों के स्वभाव पर अधिक निर्भर करता है। यदि दोनों भाव में सौम्य ग्रह उपस्थित हैं तो शुभ फलों की प्राप्ति में वृद्धि होती है। यदि अशुभ ग्रह बैठे होंगे तो शुभ फलों की मात्रा घट जाएगी। उदाहरण के लिए यदि चंद्रमा वृषभ राशि में है और उससे दूसरे भाव में बुध, बृहस्पति और शुक्र बैठे हैं तो यह एक प्रबल सुनफा योग होगा और काफी धन देगा।

इसी तरह यदि शनि चंद्रमा से बारहवें भाव में स्थित हो तो वह जातक को जीवन के अंतिम सोपान में सांसारिक वस्तुओं से विरक्त कर देता है। इसका कारण यह है कि बारहवां भाव मोक्ष और त्याग का होता है।

सुनफा-अनफा योग का फल

जो जातक सुनफा योग में पैदा होता है वे बुद्धिमान्, धनवान होते हैं। उन्हें ख्याति प्राप्त होती है। ऐसे जातक स्वअर्जित संपत्ति के मालिक होते हैं। शासनाधिकारी भी होते हैं।

जो अनफा योग में पैदा होते हैं, वे दिखने में उत्तम और शीलवान होते हैं। आत्मसम्मान कूट-कूट कर भरा होता है। उन्हें सांसारिक सुख-साधन उपलब्ध होते हैं। कपड़ों के शौकीन होते हैं। वे सन्तोषी और प्रसन्नचित रहते हैं। उनका शरीर स्वस्थ रहता है। समाज में प्रतिष्ठा कमाते हैं। जीवन के अंतिम चरण में संन्यास धारण कर लेते हैं।

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